Friday, July 10, 2015

आपके पधारने का धन्यवाद...

आपके पधारने का धन्यवाद...
ये बोर्ड कुछ यही कह रहा है, लेकिन बारिश के मौसम में इस धन्यवाद के अगले ही कदम पर आपको क्या मिल जाए, आप सोच भी नहीं सकते। और यकीन मानिए आप करना भी नहीं चाहेंगे।
ज़रा ध्यान से देखिए... तस्वीर में आप एक आदमी को हाथ में कुदाल लिए खड़ा देख सकते हैं।
ये भाई साहब पानी की निकासी का रास्ता खोज रहे थे। किसी महकमे के इंतज़ार में तो यहां के लोग सड़ांध भरे इस पानी में यूहीं सारा मौसम बैठे रहेंगे लेकिन बारिश की हर फुहार आपके लिए राहत नहीं परेशानी का सबब बनती जाएगी। ऐसा कमोबेश इन लोगों के साथ हर साल हर बारिश होता होगा लेकिन इस समस्या का समाधान कब निकलेगा ये कोई नहीं जानता। पार्टी बदल जाती है, नेता बदल जाते हैं, सरकारें बदल जाती हैं लेकिन कुछ है जो साल दर साल यूंही बदस्तूर जारी रहता है और वो है दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों में लोगों का नारकीय हालात में जीवन। मौसम की पहली बारिश ही सिविक एजेंसियों की पोल खोल देती है लेकिन यहां ये हालात पहली से आखिरी बारिश तक बने रहते हैं... और शायद बिना बारिश के भी। हम लोग राजधानी की सड़कों पर एक-दो घंटे का जलभराव नहीं झेल पाते हैं और ये सड़ांध इन लोगों के जीवन का जैसे हिस्सा बन जाती है...एक-दो नहीं बल्कि पूरे 24 घंटे... ऐसा एक-दो दिन नहीं बल्कि सालों से चला आ रहा है और शिकायतें हर साल यूंही बह जाती है इसी तरह... लोग जैसे आदी हो चले हैं . . .

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